जौनपुर, आज पूरे देश मे वायल हो रही विडियो एवं तस्वीरो मे सबसे ज्यादा फोटो और विडियो वायल हो रहा है उसमे देखने से पता चलता है कि कोई प्रतिदिन 10 हजार लोगो को खाना खिला रहा है तो कोई 50 हजार लोगो को, कोई गरीब बस्तीयो मे जाकर 10 किलो रासन सामान बांट रहा है तो कोई घर घर जाकर 1किलो आटा का पैकट ही वितरण कर रहा है सबसे अहम और सोचने वाली बात यह है कि हम शोशल मीडिया पर वायरल हर बात पर नजर रखते है मगर उसी शोशल मीडिया पर वायरल एक विडियो को अनदेखा कर दिया गया है जिस देख कर गरीबो को दान करते हुए कि जारही विउियो रिकार्डिंग मानवता को शर्मसार करती है
विडियो मे दिखागया गया है कि दरवाजे से एक बच्चा भागते हुए घर मे आता है और घर के अंदर आकर रोटी के लिए परेशान अपनी बड़ी दोनो बहनो को खुसी से बताता है कि दीदी बाहर मुफ्त का राशन बट रहा है बच्चे कि बात सुन दोनो बहने खुशी से भागते हुए दरवाजे पर आती है और राशन का पैकट थामने को तैयार होती है उसी समय राशन विरण करने वाले लोग कहते है कि आपको राशन का थैला देते हुए हमे विडियो निकालनी है इतना सुनते ही लड़की हाॅथ खीच लेती है और कहती है नही भईया मुझे इसकी जरूरत नही, घर मे आकर अपने भाई बहनो के बीच मे रोते हुए कहती है कि ए लोग दान नही ब्यापार कर रहे है तस्वीरो का ब्यापार। उस विडियो को देखकर वास्तव मे इंसान सोचने पर मजबूर हो जाता है कि एक तरफ सुविधा सम्पन्न लोग गरीबो को खाना खिलाने के नाम पर धन खर्च कर रहे है क्या यही उनकी पहचान कम है? क्या उनको यह बताना जरूरी है कि वे प्रतिदिन हजार या दस हजार लोागो को भोजन करवाते है,मिली जानकारी के अनुसार गुजरात के जिला सूरत मे विगत दिनो किसी भले मानव ने महज 1 किलो के आटे का पैकट ट्रक मे भर कर देर रात गरीब बस्ती के के बेहद गरीबो मे वितरण किया रात के समय 1 किलो आटा वही लेने गया जो वास्तव मे बहुत गरीब था यहक्या आटा का पैकट घर लाकर जब खोला गया तो प्रत्येक पैकट मे 15 हजार रू0 नगद मिले, तस्वीर और विडियो की बात क्या करे उस दान दाता का नाम तक किसी को नही पता ऐसा दान दाता ही हमारे देश का वास्तविक मददगार है, सारी कहानी का निश्कर्ष निकलता है कि किसी भुखे को खाना देते हुए फोटो खीचना आाखिर क्यो जरूरी है? क्या कल उस तस्वीर को दिखा कर सरकार से लाभ लेना है या समाज मे गरीबो का मसिहा बनक नाम कमाना है?