कलकत्ता हाईकोर्ट ने गुरुवार को उस याचिका पर सुनवाई की,जिसमें कहा गया है कि मृत्यु के प्रमाण पत्र के बिना कोरोना रोगी के शरीर को कब्रिस्तान में दफनाना विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन या अनादर करना है। यह दिशा-निर्देश ''कोरोना के संदर्भ में संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण करने के लिए एक मृत शरीर के सुरक्षित प्रबंधन'' के संबंध में किए गए हैं।
याचिकाकर्ता ने व्यक्तिगत तौर पर पेश होते हुए तर्क दिया कि ''उनके निवास से सटा एक कब्रिस्तान है। 3 अप्रैल को, स्थानीय प्रशासन ने इस वायरस से संक्रमित होने के कारण मरने वाले एक बसरत मोल्लाह के शव को दफनाने की अनुमति दी थी,जबकि उसकी मौत के संबंध में कोई मृत्यु प्रमाण पत्र पेश नहीं किया गया। अदालत को यह भी बताया गया कि पिछले दिनों ही इस जिले को ''हाॅट स्पाट'' इलाका घोषित कर दिया गया था।'' याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि राज्य के अधिकारियों ने विभिन्न आदेशों में निहित निर्देशों के अनुसार उचित कदम नहीं उठाए हैं। इन सभी आदेशों का काॅपी याचिका के साथ दायर की गई है। उसने बताया कि उसने एक प्रतिनिधित्व या ज्ञापन के माध्यम से अपनी शिकायत अधिकारियों के पास भेजी थी। लेकिन आज तक उस पर विचार नहीं किया गया है और न ही कोई उचित कदम उठाया गया है। इसलिए, इस तरह की निष्क्रियता में अदालत के तत्काल हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है। एकल पीठ ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि-' " वर्तमान में कोरोना वायरस के कारण अभूतपूर्व स्थिति पैदा हो गई है। इसलिए इस आपदा को बढ़ने से रोकने के लिए अधिकारियों और बड़े स्तर पर जनसमूह को हाथ से हाथ मिलाकर या मिलकर काम करने की आवश्यकता है।' 'जहां तक संभव हो वायरस की रोकथाम को सुनिश्चित करना और साथ में चिंता,पीड़ा और खतरे की अवधारणा को कम करना ही एक ''अंतरिम उपाय'' है। अदालत ने राज्य-प्रतिवादियों को निर्देश दिया है कि ''याचिका के साथ दायर किए गए विभिन्न अधिकारियों की तरफ से जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार सभी आवश्यक कदम सख्ती से उठाए जाएं।'' पीठ ने कहा है कि हलफनामे के रूप में एक रिपोर्ट दायर करके बताया जाए कि इस संबंध में क्या-क्या कदम उठाए गए हैं।