पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार से आग्रह किया है कि सरकार COVID-19 संकट के निस्तारण में सिविल सोसायटी के सदस्यों की मदद नहीं लेने की नीति पर पुनर्विचार करे। चीफ जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एस कुमार की खंडपीठ ने कहा कि "लोकतांत्रिक समाज में, सिविल सोसायटी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, विशेष कर आपदा के समय में"। पीठ एओआर पारुल प्रसाद की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्हें अनुसंधान सहयोगी अक्षत अग्रवाल (अंतिम वर्ष, जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल) ने सहायता की थी। याचिका में जिला मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उन्होंने नागरिक समाज संगठनों और एनजीओ को जरूरतमंद लोगों की मदद और राहत देने की अनुमति नहीं दी थी। 19 मई को अदालत ने एक अन्य वकील राजीव रंजन की याचिका (क्वारंटीन सेंटर की स्थिति के बारे में) के साथ उक्त याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को इस मुद्दे पर उच्चतम स्तर पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया। बेंच ने कहा, "हमारा विचार है कि शायद यह सार्वजनिक हित में होगा, राज्य के हित में भी होगा, कि सरकार सिविल सोसायटी के सदस्यों से व्यक्तिगत या सांगठनिक आधार पर सहयोग न लेने की अपनी पुरानी नीति पर दोबारा गौर करे, विशेष कर रेलवे स्टेशन पर या क्वारंटीन सेंटरों में भीड़ को मैनेज करने जैसे मामलों में। हम इनमें कोई नुकसान नहीं देखते हैं, खासकर जब सिविल सोसायटी ऐसे काम, किसी क्रेडिट का दावा किए बिना, स्वैच्छिक आधार पर करना चाहती है। हम पहले ही यह राय व्यक्त कर चुके हैं कि लोकतांत्रिक समाज में, आपदा के समय में सिविल सोसायटी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। हम यह देख सकते हैं कि आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 35 के तहत, सरकार के लिए प्राधिकरण का गठन करना अनिवार्य है, चाहे वह राष्ट्रीय स्तर पर हो, राज्य स्तर या जिला स्तर पर हो और इनमें गैर सरकारी संगठनों की भूमिका को संसद ने भी स्वीकार किया है।" अदालत ने स्वराज अभियान (I) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में सुप्रीम कोर्ट की मिसाल का हवाला देते हुए कहा; "स्वराज अभियान बनाम यूनियन ऑफ इंडिया व अन्य (2016) 7 SCC 498 में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बिहार राज्य में सूखे के मुद्दे के निस्तारण के लिए कुछ दिशा-निर्देश जारी किए थे, जिनमें से एक इस प्रकार था- 97.8. मानवीय पहलू जैसे कि प्रभावित क्षेत्रों से पलायन, आत्महत्या, अत्यधिक तनाव, महिलाओं की दुर्दशा और बच्चे आदि ऐसे कारक हैं जिन्हें राज्य सरकारों द्वारा सूखे से संबंधित मामलों में...ध्यान रखा जाना चाहिए। पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न और पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, हालांकि इन्हीं कारकों पर ध्यान पर्याप्त नहीं है।" कोर्ट ने कहा कि सूखे के कारण होने वाली आपदा के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए उपरोक्त निर्देश COVID 19 की मौजूदापरिस्थितियों में भी समान रूप से लागू होंगे। पीठ ने कहा कि भारत की 1/10 वीं आबादी बिहार में रहती है और देश के विभिन्न हिस्सों से लगभग आठ लाख लोग वापस आ रहे हैं, बाकी चीजों को छोड़ दें तो मानव प्रबंधन की खुद एक समस्या, जिस पर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है। कोर्ट ने आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव, बिहार सरकार को निर्देश दिया कि अगली तारीख से पहले सभी मुद्दों पर हलफनामा दाखिल करें। मामले की अगली सुनवाई 22 मई को होगी। पिछले महीने, मद्रास हाईकोर्ट ने राजनीतिक दलों, गैर सरकारी संगठनों और आम लोंगों को कई शर्तों के साथ COVID-19 राहत कार्य में भाग लेने की अनुमति दी थी।
https://hindi.livelaw.in/category/top-stories/civil-society-cant-be-ignored-in-a-democratic-society-patna-hc-urges-state-to-reconsider-policy-of-not-engaging-ngos-for-covid-19-relief-157073
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गुरुवार, 21 मई 2020
पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार से कहा, COVID 19 राहत कार्यों में गैर-सरकारी संगठनों की मदद नहीं लेने की नीति पर पुनर्विचार करें
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