सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह उन लोगों को राशन मुहैया कराने के लिए आयोम वेलफेयर सोसाइटी द्वारा किए गए प्रतिनिधित्व पर विचार करे, जिनके पास कोई राशन कार्ड नहीं है। याचिकाकर्ता आयोम वेलफेयर सोसाइटी ने लॉकडाउन के दौरान गरीबों और दलितों तक सार्वजनिक वितरण प्रणाली के "सार्वभौमिकरण" की मांग की थी, जिससे गरीबों और अन्य कमजोर समुदाय तक भोजन की पहुंच बढ़ाई जा सके। याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया था कि यह वैश्विक महामारी के वर्तमान समय में सभी के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थों की उपलब्धता को मज़बूत करेगा और देश की अन्य 20% आबादी के अस्तित्व की आवश्यकताओं के लिए भोजन की ज़रूरत को पूरा करने में सक्षम करेगा। यह भी बताया था कि
खाद्यान्नों का भंडार है और इस प्रकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली का सार्वभौमीकरण गरीब से गरीब लोगों को भोजन तक पहुंच में सक्षम करेगा, जिनमें प्रवासी समुदाय, बेघर और बुजुर्ग, खानाबदोश जनजातियां और अन्य कमजोर समुदाय तक भोजन की पहुंच शामिल हैं। याचिकाकर्ताओं को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनने के बाद अदालत ने कहा कि यह "नीतिगत मुद्दा" है और इस तरह इसे केंद्र सरकार के विचार के लिए खुला छोड़ दिया। जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा, "यह एक नीतिगत मसला है, इसे भारत सरकार और इस राहत पर विचार करने के लिए संबंधित राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के लिए खुला छोड़ दिया गया है।" तदनुसार, याचिकाकर्ता को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के माध्यम से भारत संघ को रिट याचिका की एक प्रति देने का निर्देश दिया गया।