सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विदेशों में फंसें भारतीय नागरिकों को वापस लाने के मामले में ऐसी महिलाएं, जो गर्भावस्था के अंतिम चरण में हैं, (थर्ड ट्राइमेस्टर) को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी सऊदी अरब में फंसी 250 गर्भवती महिलाओं की याचिका पर की है, जिसमें उन्हें सऊदी अरब से निकाले जाने की प्रार्थना की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, "सरकार याचिकाकर्ताओं के विशेष मामलों के अनुसार प्राथमिकता के सवाल का पता लगाएगी और उसी के अनुसार उचित कदम
उठाएगी।" जस्टिस अशोक भूषण, संजय किशन कौल और बीआर गवई की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई की, जिसमें भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि विदेशों में फंसे भारतीय नागरिकों की स्वदेश वापसी के उद्देश्यों के लिए तय मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) का कड़ाई से पालन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि, एसओपी के क्लॉज 2 (iii) के अनुसार गर्भवती महिलाओं को पहले ही प्राथमिकता दी जा चुकी है। याचिकाकर्ताओं के संबंध में उपरोक्त क्लॉज के अनुसार उचित कदम उठाए जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक याचिकाकर्ता गर्भावस्था के अंतिम चरण में हैं, उन्हें प्राथमिकता दी जानी चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एडवोकेट जोस अब्राहम की ओर से दायर जनहित याचिका की सुनवाई में याचिकाकर्ता (ओं) की ओर से पेश हुईं सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने कहा कि याचिकाकर्ता सऊदी अरब के विभिन्न प्रांतों में नर्स और डॉक्टर के रूप में कार्यरत हैं और कठिन हालात में हैं, जो कि "उनके साथ-साथ भ्रूण के लिए भी घातक साबित हो रहा है"। याचिका में याचिकाकर्ताओं की परेशानियों पर भी प्रकाश डाला गया है विशेष रूप से उन मामलों में जहां, "याचिकाकर्ता सऊदी अरब में अकेले रह रही हैं, उनकी देखभाल के लिए परिवार का कोई सदस्य मौजूद नहीं है।" और उन्हें उचित चिकित्सा सुविधाओं भी उपलब्ध नहीं हो पा रही है। याचिकाकर्ता ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सरकारी की जिम्मेदारी है कि वह अजन्मे बच्चे के जीवन का संरक्षण करे। इसके अलावा, याचिका में कोर्ट से निवेदन किया गया है कि रियाध स्थित दूतावास को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिए जाएं कि याचिकाकर्ताओं को उचित चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हों।