हीरालाल यादव "हीरा"
पड़ता नहीं हूँ सोच के ये बात प्यार में I
घाटे बहुत हैं चाहतों के रोज़गार में ।।
हाथों में ईश के है ज़माने की बागडोर I
कुछ भी नहीं है आदमी के इख़्तियार में ।।
है देश का भविष्य इसी पर टिका हुआ ।
मत बेचिएगा वोट को सौ या हज़ार में ।।
आएँगे जाने ज़िन्दगी में कब वो अच्छे दिन ।
पलकें बिछाए जिनके खड़े इंतज़ार में ।।
तुम और कुछ बढ़ा के बिगाड़ोगे क्या मेरा ।
यूँ भी खड़े हैं दर्द हज़ारों क़तार में ।।
चर्चे तेरी जफ़ाओं के सुनकर भी ज़िन्दगी ।
हर्गिज़ कमी न आई मेरे ऐतबार में ।।
*हीरा* दबा-दबा के ये रखते हो किसलिए ।
दिल का गुबार बहने दो अश्क़ों की धार में ।।
हाथों में ईश के है ज़माने की बागडोर I
कुछ भी नहीं है आदमी के इख़्तियार में ।।
है देश का भविष्य इसी पर टिका हुआ ।
मत बेचिएगा वोट को सौ या हज़ार में ।।
आएँगे जाने ज़िन्दगी में कब वो अच्छे दिन ।
पलकें बिछाए जिनके खड़े इंतज़ार में ।।
तुम और कुछ बढ़ा के बिगाड़ोगे क्या मेरा ।
यूँ भी खड़े हैं दर्द हज़ारों क़तार में ।।
चर्चे तेरी जफ़ाओं के सुनकर भी ज़िन्दगी ।
हर्गिज़ कमी न आई मेरे ऐतबार में ।।
*हीरा* दबा-दबा के ये रखते हो किसलिए ।
दिल का गुबार बहने दो अश्क़ों की धार में ।।